
रूस और अमेरिका की कूटनीतिक कुश्ती एक बार फिर ग्लोबल व्यापार को उठक-बैठक करवा रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जिन्हें टैरिफ़ लगाना उतना ही पसंद है जितना बच्चों को पॉपकॉर्न, अब रूस पर फिर से भारी पड़ने का मूड बना चुके हैं।
पुतिन से हालिया वार्ता जब “No Deal” मोड में खत्म हुई, तो ट्रंप ने तुरंत अपने एयरफोर्स वन से ऐलान कर दिया — “अब रूस की चिप्स फ्राई होंगी और स्टील को सेकेंगे!”
Steel & Chips: अगला निशाना
इस बार ट्रंप की टैरिफ़ गन के दो सीधे शिकार होंगे —
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सेमीकंडक्टर चिप्स, और
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रूसी स्टील।
उन्होंने कहा, शुरुआत में तो ‘हल्की फुल्की डांट-डपट’ होगी, लेकिन फिर आएगा असली टैरिफ़-टोर्नेडो, यानी 200% से 300% तक की मार!
“हम कम से शुरू करेंगे, ताकि कंपनियों को अमेरिका लौटने का टाइम मिले — फिर टैरिफ़ बूस्टर डोज़ देंगे। जैसा दवाइयों में किया था।” – ट्रंप
मेक इन USA: लेकिन छूट सिर्फ ‘Deserving’ को!
ट्रंप का मास्टर प्लान साफ है — अगर आप अमेरिका में फैक्ट्री लगाएंगे, तो टैरिफ़ से छुट्टी मिलेगी। वरना, “बाय बाय चिप्स!”
उदाहरण के लिए, Apple जैसी कंपनियां जो घरेलू निर्माण में $600 अरब झोंक रही हैं, उन्हें हो सकता है VIP पास मिल जाए।
लेकिन चिंता ये है कि छूट की प्रक्रिया अभी धुंधली है — और जब तक नियम साफ नहीं होते, तब तक कंपनियों की नींद उड़ी रहेगी।
वैश्विक व्यापार को लगेगा झटका?
जब दुनिया पहले से ही सप्लाई चेन के झूले में झूल रही हो, ऐसे में अगर अमेरिका रूस को टैरिफ़ के झूले में उल्टा लटकाए, तो असर साफ दिखेगा:
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चिप्स महंगी, गैजेट्स के दाम ऊपर

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स्टील महंगी, इन्फ्रास्ट्रक्चर पर असर
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कंपनियां घबराई हुई, निवेश होल्ड पर
और हाँ, अगर रूस ने भी जवाब में टैरिफ़-टोपी पहन ली, तो ये लड़ाई मटर-पनीर से मिसाइल तक पहुंच सकती है!
कहां तक पहुंचेगी जांच?
अप्रैल से ही अमेरिका की वाणिज्य विभाग जांच कर रहा है कि सेमीकंडक्टर्स और फार्मास्यूटिकल्स अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।
और जब “नेशनल सिक्योरिटी” शब्द जुड़ जाता है, तब टैरिफ को सुपरपावर लेवल की ताकत मिल जाती है।
“टैरिफ़ है टॉय, पुतिन बनें बॉय!”
ट्रंप का टैरिफ़ प्लान अब किसी नीति से ज्यादा पॉलिटिकल स्टंट और इकोनॉमिक हथियार बन चुका है। रूस के लिए ये सिर्फ व्यापार की बात नहीं — ये ट्रंप का मैसेज है:
“Don’t mess with the Chips… or you’ll get fried!”
रूस कैसे प्रतिक्रिया देगा? कंपनियां अमेरिका लौटेंगी या चीन की तरफ भागेंगी? और टैरिफ़ की इस चुंगीबाज़ी का आख़िर में बिल कौन भरेगा — ट्रंप या जनता?
पता चलेगा अगले एपिसोड में — “Game of Tariffs: Season Trump”
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